लखनऊ। एचएपी आर्थिक रूप से हानिकारक और जीवन के लिए खतरनाक होती असामान्य गर्मी से निपटने हेतु भारत की प्राथमिक नीतिगत कार्ययोजना है। एचएपी हीटवेव के प्रभाव को कम करने और हीटवेव के उपरांत किए गए प्रतिक्रियाओं के निर्धारण हेतु राज्य, जिला और शहरी सरकारी विभाग स्तर पर अनेक प्रकार की प्रारंभिक गतिविधियां, आपदा राहत कार्य योजना हेतु विभिन्न दिशा-निर्देश जारी करते हैं।
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की नई रिपोर्ट 'भारत हीटवेव के प्रति कैसे अनुकूल हो रहा है?: परिवर्तनकारी जलवायु कार्रवाई हेतु निरीक्षण के साथ हीट एक्शन प्लान का आकलन’। यह शोध 18 राज्यों में 37 एचएपी (HAP) का आकलन करता है ताकि यह समझा जा सके कि देश असामान्य गर्मी (हीटवेव) से निपटने के लिए कितना तैयार है। हमारे आकलन में कवर किए गए राज्यों, शहरों और जिलों की सूची यहाँ है:
“भारत ने पिछले एक दशक में दर्जनो हीट एक्शन प्लान बनाकर काफी प्रगति की है। लेकिन हमारे आकलन से कई कमियों का पता चलता है जिन्हें भविष्य की योजनाओं में दूर करने हेतु कारगर उपाय की पहचान करनी होगी । यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो भारत की श्रम उत्पादकता में कमी, कृषि में अचानक तथा निरंतर होने वाले व्यवधानों (जैसा कि हमने पिछले वर्ष मे देखा है), और असहनीय रूप से गर्म होते शहरों के कारण आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा, क्योंकि गर्मी की लहरें लगातार और अत्यधिक तीव्र होती जा रही हैं” - आदित्य वलियथन पिल्लै, सीपीआर (CPR) में एसोसिएट फेलो और इस रिपोर्ट के सह-लेखक।
सीपीआर की यह रिपोर्ट अनुशंसा करती है कि एचएपी वित्तपोषण के स्रोतों की पहचान करें - या तो नई निधियों से या मौजूदा राष्ट्रीय और राज्य नीतियों के साथ कार्यों को जोड़कर - और निरंतर सुधारात्मक रूप में कड़े एवं स्वतंत्र मूल्यांकन स्थापित करें।
"स्थानिक आधार पर और लागू करने मे सरल एचएपी के बिना, भारत के सबसे कमजोर वर्ग (गरीब, संसाधन विहीन वर्ग) अत्यधिक गर्मी से पीड़ित रहेंगे, जिसका भुगतान उन्हे अपने स्वास्थ्य और आय दोनों के साथ करना होगा” - आदित्य वलियथन पिल्लै, सीपीआर में एसोसिएट फेलो एवं सह-लेखक।