प्रयागराज माहे मोहर्रम की दूसरी तारीख को मदीना छोड़ कर इमाम हुसैन अपने अन्सारों अक़रुबा के साथ करबला में खैमे नसब करने पहुंचे थे।माहे मोहर्रम की दूसरी को विभिन्न इलाक़ों में मजलिस जारी रही ओलमा ने अपने बयान में यह ज़िक्र किया की जब नवासा ए रसूल इमाम हुसैन करबला पहुंचे तो सबसे पहले उस ज़मीन को खरीदा जिसे पहले नैनवां भी कहा जाता था जो आज इराक़ के करबला के नाम से जानी जाती है जहां दुनिया भर के लोग लाखों की संख्या में ज़ायर रौज़ा ए अक़दस की ज़ियारत को जाते हैं।
चक ज़ीरो रोड स्थित इमामबाड़ा डिप्यूटी ज़ाहिद हुसैन में मजलिस को मौलाना रज़ी हैदर रिज़वी ने खिताब करते हुए यज़ीदी लश्कर के खानदाने रिसालत पर पानी का पहरा लगाने के साथ तमाम ज़ुल्मो सितम की दास्तां बयां की।इमामबाड़ा नज़ीर हुसैन बख्शी बाज़ार में अशरे की मजलिस को मौलाना आमिरुर रिज़वी तो घंटाघर स्थित इमामबाड़ा सय्यद मियां में ज़ाकिरे अहलेबैत रज़ा अब्बास ज़ैदी ने खिताब किया रज़ा इस्माईल सफवी व साथियों ने मर्सिया पढ़ा।वहीं शाहगंज के बरनतला में अज़ाखाना फातेह जोहरा में अशरे की दूसरी मजलिस में अब्बास ज़की पासबां ने ग़मगीन मर्सिया पढ़ा तो ज़ाकिरे अहलेबैत अख्तर हसन नजफी साहब क़िबला ने करबला की बहत्तर शहीदों का ग़मगीन तज़केरा किया तो हर आंख नम हो गई।
ग़दर के ज़माने के इमामबाड़े में सातवीं पीढ़ी की देख रेख में हो रही दस दिवसीय अशरे की मजलिस
दरियाबाद पठनवल्ली स्थित इमामबाड़ा अबुल हसन खां जो ढाई सौ साल पुराना है और इस इमामबाड़े में चांदी के पंजे लगे हैं।जिसकी देख रेख वर्तमान में इस इमामबाड़े के सातवीं पीढ़ी के मशहद अली खां करते हैं। उम्मुल बनीन सोसायटी के महासचिव सैय्यद मोहम्मद अस्करी के मुताबिक़ सन१८५७ से पूर्व लगभग ढाई सौ वर्ष पूर्व इस इमामबाड़े की तामीर अकबर अली खां ने की थी उसके बाद गुलज़ार अली खां मरहूम मशहद अली खां,शुजात हुसैन खां अबुल हसन खां सरदार हुसैन खां ने सम्हाली।अब सरदार हुसैन खां के पुत्र मशहद अली खां इस इमाम बाड़े में एक मोहर्रम से लगातार बीस दिनों तक पुरुषों की मजलिस का इंतेजाम करते हैं।वहीं एक मोहर्रम से इमाम हुसैन के चेहलुम तक प्रतिदिन महिलाओं की मजलिस भी होती है।इसी इमामबाड़े पर पांचवीं मोहर्रम को देर रात एक बड़ी मजलिस होती है जिसमें ज़ुलजनाह की शबीह भी निकाली जाती है और अन्जुमन हाशिमया दरियाबाद तेज़ धार की छूरीयों से लैस ज़ंजीरों से मातम भी करती है।क़दीमी मजलिस के कारण शहर के साथ दूर दराज़ से भी अक़ीदतमन्दों का जमावड़ा होता है।मशहद अली का कहना है कि ग़दर से जारी इस खास मजलिस में ज़ुलजनाह की ज़ियारत के साथ लोग बड़ी तादाद में अपनी मन्नतों को बढ़ाने भी आते हैं।तमाम जुलूसों व मजलिसों में हसनी हुसैनी फाउंडेशन के अध्यक्ष वज़ीर खां ,इसरार नियाज़ी शाहिद खान ,अमन नियाज़ी ,चांद मियां ग़म का इज़हार करते हुए अश्कों का नज़राना पेश करने को मौजूद रहते हैं।
शोहदा ए करबला की प्यास को याद करते हुए कोतवाली पर लगाई गई ठण्डे पानी व शर्बत की सबील
खानदाने रिसालत पर करबला की ज़मीन पर यज़ीदी लश्कर के ज़ुल्मो सितम के साथ पानी पर भी पाबन्दी लगा दी गई थी।नहरे फुरात से खैमों को उखाड़ने पर मजबूर करने के साथ यज़ीदी लश्कर ने पहरा लगा दिया छै माह के अली असगर को भी पानी नहीं दिया खानदाने रिसालत तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया उसी की याद में चौक कोतवाली के पास शाहरुख क़ाज़ी व मोमनीन की तरफ से ठण्डे पानी व शर्बत की सबील लगातार दस दिनों तक संचालित हो रही है।जहां राह चलने वालों के साथ तमाम लोग सैराब हो रहे हैं और प्यासे हुसैन की प्यास की शिद्दत का एहसास कर अश्कबार हो रहे हैं।